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Saturday, October 24, 2015

Lafz(2)

लफ्ज़ ज़िंदा हुआ 
था तुझे जानकर 
उसने पूछा नहीं था तुझसे , 
बैर या प्यार कर..  
उसने चाहा था, तू बस
सच न इनकार कर.. 

गुनगुनाना या चीखना,
चुप न होना मगर 
चुप में खो देगा तू 
खुद को, और खो गया तू अगर 
लफ्ज़ गिर जाएगा उस पल 
टूटकर हारकर 

स्याही नहीं है बस 
बिखरे जो कागज़ पर 
और लगे जग को, जानता है तू इसे... 
तू कौन है जो यूँ? 
पैमानों में अपने, 
तोलता है, छानता है इसे... 

लफ्ज़ पूछे नहीं, 
बैर या प्यार कर 
लफ्ज़ चाहे तू बस, 
सच न इनकार कर 

समझे जो तू इसको, 
तेरा रहे तुझमे बन सुलझन 
समझे न तो, 
तू अधूरा रहे..
कुछ है मगर इसका,
जो रह जाएगा तेरे मन में,तेरा बन 
तू कहे न कहे...

गुनगुनाना या चीखना,
चुप न होना मगर 
चुप में खो देगा तू 
खुद को, और खो गया तू अगर 
लफ्ज़ गिर जाएगा उस पल 
टूटकर हारकर।

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