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Wednesday, February 26, 2014

रौशनी

रास्तों में कहीं रौशनी मिल गयी 
मंज़िलों तक मेरे साथ चलना मगर। 
मौसमों को बदलते हुए देखना,
भोर को सांझ में ढलते देखना,
 और मुझे आसमां और ज़मी के दरमियां 
 सूखे पत्तों पे चलते हुए देखना। 

हाँ सवेरे से  जब रात हो जायेगी,
इस ज़मीं की हर इक चीज़ सो जाएगी,
देर तक जागते मेरे दो नैन में;  
एक अधूरा सा बन ख्वाब जलना मगर। 


रास्तों में कहीं रौशनी मिल गयी 
मंज़िलों तक मेरे साथ चलना मगर। 

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